पसोपेश में रहते हैं मुसाफिर !
खुशनुमा अंदाज़ छूपता क्या है !
पर्दों के पीछे खड़े लाख ख्वाइशयेन !
सब बिखर रहे आसूनों के संग !
सबने देखे किताब हमारी रोशनी में !
क्या देखा जो आँखों में न झाँका !
वो कटता हर एक लम्हा ज़िन्दगी से !
रोता हुआ जाता है न खुसी के न गुमो के!MANORANJAN KUMAR