जैसे तदपी है ये धरती बिन बारिस के ,
इस खौलती गर्मी के कहर रे रोती हुई,
मैं तदपा यूँ सदियों से तेरे प्यार को ,
आँसू मेरे भी सूखे बंज़र धरती की तरह,
यूँ कितने हजार बेरहम मौसम गुज़रे हैं ,
मुझ पर जो गुजरी उसका कोई अफ़सोस नहीं ,
उन्ही मासूम यादों के सहारे जिंदा जो हूँ ,
तुम पास नहीं आये इसका कोई गिला नहीं ,
पछतावा हमें अपने आप पर यूँ है की ,
अब भी आग नकारे दिल में जलती क्यूँ है .
जहाँ रखना था अपने गमों को पोशीदा,
वहाँ बयां कर रहे हैं हम अपनी बेगरैत ज़िन्दगी को.
Monday, June 16, 2008
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